समुद्र और बादल
समुद्र और बादल
एक ही कोख से जन्म लिया
पहले बढ़ें बड़े हुए
एक ही क्षमता मिली थी मां से
दोनों कसीले नवयुवक हुए
बोली प्यारी माता ने
अग्र पथ पर अब तुम जाओ
मेरे प्यारे भोले बादल
धरती पर हरियाली लाओ
मां की अश्रुपूर्ण विदाई पाकर
दोनों निकल पड़े अपने निज पथ पर
एक मोह में फंसा
एक मोह तजा
विरक्त हुए हैं दोनों अपने पथ पर
एक बादल जो बढ़ा आगे
देखा तड़पते धरती को
दया आ गई लगा बरसने
उस प्यारी मिट्टी पर
दूजा जो फसा मोह में
गया नहीं दूर वह समुद्र से
लगा बरसने वह भी
अपने अग्र भ्राता जैसे
सिंचित था जल उसमें भी
अकुलाएं मेघ थे बरस रहे
पर निरर्थक था वह प्रयत्न भी
जो जनमानस के काम ना आए।
