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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Classics

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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Classics

यादों के पन्ने

यादों के पन्ने

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अतीत की लेके किताब हाथ में,

यादों के पन्ने उलट-पलट रही हूं।

याद कर उन रंगीन लम्हों को मैं,

कभी सिसक कभी मुस्का रही हूं।


वक्त गया फिसलता मुट्ठी रेत सा,

यादों से हो बेजार दिल में संजोती।

कुछ खट्टे कुछ मीठे वे चित्र देख,

धागे में, बीते पल के मोती पिरोती।


कभी खुशी तो कभी गम के आंसू,

पलकें नम, कोरें भीग, भरती उसासू।

बचपन में मां के आंचल का सफर,

पिता के हाथ पकड़ चले हर डगर। 


कागज नाव से कर दुनिया सैर,

तितली संग उड़ते न कोई से बैर।

दादी के मनाते पल ठहर जाते,

बुआ से रूठे चाचू बात मनवाते।

यौवन की आहट हमसफर मिले

चांदनी रात बैठ नीड़ ख्वाब बुने

भाई बहिन संग,दिन बिताने वाले 

कब घर-गृहस्थी फिक्र में सिमटे 


बगिया में प्यारे नन्हे गुल खिल गये  

दिन रात, रात से दिन यों बदल गये 

बच्चे धीरे-धीरे खुले गगन में उड़ते

पंख फैला पुराना घोसला भूल गये


रात की तन्हाई में हम यादों में खो

लफ्ज साथ न देते चेहरे बदल गये

ले प्रभु सहारा दिन यादों में गुजारे

लिखें प्रतिलिपि में यादों के नजारे।


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