मैं
मैं
साहिलों पे मैं चला
मंजिलों की चाह में चला !
रुका नहीं, चलता चला
रेत के किनारों पे
कदमों के निशां संग चला
सायों के साथ मैं अथक सा चला
मंजिलों का तो पता नहीं, मगर
क्षितिज से मैं बेहिसाब मिला।
साहिलों पे मैं चला
मंजिलों की चाह में चला !
रुका नहीं, चलता चला
रेत के किनारों पे
कदमों के निशां संग चला
सायों के साथ मैं अथक सा चला
मंजिलों का तो पता नहीं, मगर
क्षितिज से मैं बेहिसाब मिला।