मसूरी की यादें
मसूरी की यादें
मन भूलत नांहि मसूरी ।।
बहुत बरस बसि देवभूमि मंह,
अन्तस् सुख भल पायो,
खेलत रहति प्रकृति तंह सुन्दर,
रूप अनूप सुहायो।।
अनगिन धार बहति नित गंगा,
कल-कल किल्लोल सुनावै,
कहुं अतिमन्द कहूं अति चंचल,
चलै मुदित मन गावै।।
गरजि लरजि उतरति गिरि कानन,
जग पावन हित आवै,
निरखि निरखि तेहि आत्मज्ञानी,
वंहि बसि ध्यान लगावै।।
पल पल आवत मेघ मंडली,
उमड़त घुमड़त छावै,
जस कछु माय शिशुहिं परिपालय,
नेह नीर बरसावै।।
कहुं बन जात कपास सुशीतल,
गिरत बरफ मन भावै,
आजहुं रहनि विनोद तहां की,
सुमिर सुमिर सुख पावै।।
भल पायो अब ठाट लखनवी,
आय बस्यो अति दूरी,
पुनि पुनि सुमिरत सिहरत अन्तस्,
मन भूलत नांहि मसूरी।।