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Dr Kaushal N Jadav

Romance

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Dr Kaushal N Jadav

Romance

गुस्ताखी ग़ज़ल लिख़ने की

गुस्ताखी ग़ज़ल लिख़ने की

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क्या सुनाया मेरी जिंदगी का अफसाना

मैं खुद अपनी मौत की गवाही बन गया


गुस्ताखी क्या हुई इक ग़ज़ल लिखने की

और मैं खुद कलम की स्याही बन गया


मुजे थी तिश्नगी बस इक मुलाकात की

पर वो आब-ए-चश्म बनकर बह गया


अंदाजा लगाने निकला था में उन अब्सारो का

पर वोह आंखों की नमीं बनकर बह गया


कैसे बयान करूं में नग्मा उन निगाहों का

पर मैं खुद इक दास्तान बनकर रह गया


ताज़ा हुई यादें मोह्ब्बत की उस गुलबदन से

मुस्कुरा दिया हमने और बस बेकस बनकर रह गया


तराने मेरे सुनके एक शायर ने क्या ख़ूब फरमाया

क्यों बेक़रार बनके बेवक्त तूने खुद को ही दफनाया


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