बाँकपन बालपन
बाँकपन बालपन
यह उस समय की बात है जब जूनियर हाईस्कूल किसी किसी गांव मे हुआ करते थे, और छात्र छात्राओं को पैदल ही जाना पड़ता था.... पढ़िये उस समय का एहसास, एक छात्र की जुबानी जो 6-7किमी पैदल चलकर पढ़ने जाते थे... आज इंजीनियर हैं।
बहु खेतन औ खलिहानन में,
संकरी पतरी मेडन घूम घूम।।
किल्लोल करे मन नांहि डरे,
मां के आंचल को चूम चूम।।
बारिश में कीचड़ कांदो में,
बिन जूता चप्पल चल चल कर।
करि पार बगार नदी नरवा,
चुभते कांटों को सह सह कर।।
जाड़े की सिहरन ठिठुरन में ,
कनपटी बांध बस्ता साधे ।
लोहे का छल्ला लुढकाते,
सब दौड लगाते मग आधे ।।
ललचा जाते हम निरखि निरखि,
झरबेरी के मधुमय पके बेर ।
चुन चुन कर जल्दी जल्दी से,
भरते खीसे सब बिन अबेर।।
गर्मी की मलयज सुबहों में,
मन से आह्लादित हंस हंस कर।
दुपहर की तपती धरती में,
भीषण ज्वालाएं सह सह कर।।
बागन में शीतल छांव तले,
सुस्ता लेते कुछ रुक रुक कर।।
मां विद्या के आराधन में,
यहि राह चले मन फूल फूल।
नदिया के सुन्दर कूल कूल,
चलते जाते थे हम स्कूल।।
गुरुजन के शुभ आशीषन्ह से,
तब मात पिता के त्याग फले।
निज जन्मभूमि से निकसि निकसि,
वहि पुण्य -वीरभू पाय मिले।।
आज भी याद है बांकपन बालपन।।