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बचपन

बचपन

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कैसे वक़्त बीत जाता है

बच्चे थे तो अच्छे थे।

रोते थे तो सवाल नहीं

सोते थे तो कोई फिक्र नहीं,

अब कैसे हम ये से वो हो जाते हैं।


कैसे वो एक टोफी की चाहत

एक कप चाय में बदल जाती है।

कैसे वो एक बेपरवाह जिन्दगी

जिम्मेदारियों के बोझ में दब जाती है।


कैसे हमारी पसंद की वो चीजें

अब सिर्फ एक जिन्दगी जीने का

जरिया बन जाती हैं।


हमारी बचपन की वो नादानियां

अब हमारे गुनाह बन जाते हैं।

वक़्त के साथ ना जाने

कहाँ खो गया वो बचपन,

जिसमे ना जिन्दगी का भार था

नहीं वक़्त की परवाह।


एक आज़ाद पंछी अब

एक कैदी बन गया,

शायद अपनी जिम्मेदारियों का,

और कैसे वो छोटी छोटी

खुशियों में खुश रहना भूल गया

और कैसे ये वक़्त बीत गया

और बचपन को साथ ले गया।


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