आवाज़
आवाज़
मूक रही पर मुख खोली नहीं
आँखों से भी कुछ बोली नहीं
घाव गहरे बदन से छिपाती रही,
हैवानियत जुल्म ढाती रही
चुपचाप रहकर उनके
चरणों में बिछती रही
मनोभावों को कहने से डरती रही
शादी की कसमें निभाती रही,
और उसके वचन को आजमाती रही
टूटी आवाज़ ने जुबां खोली नहीं
मूक रही पर कुछ बोली नहीं।
