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डॉअमृता शुक्ला

Inspirational

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डॉअमृता शुक्ला

Inspirational

चाहत

चाहत

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चाहत है शिखर पर बैठकर आसमान छू लूँ। 

मैं बादलों को हाथों मे लेकर, जी भर खेलूं।

मैं किरणों की कूची से चित्र निर्मित करूँ 

सुनहरे सूरज से मांग कर चमकीला रंग ले लूँ। 


पत्थरों से निकल झरना बन विस्तार पाऊँ

गुनगुनाती सरिता बन गहरे समुद्र से मिल लूं। 

जंगल के ऊँचे ऊँचे वृक्षों की हरियाली बनूं

वो अपने आप ऊगे हुए सुंदर फूलों सा फूलूं। 


नीलगिरि, नीम, पीपल, बरगद से सुकून लेकर,

सरसराती शाखाओं के पत्ते बन हवा में झूलूं। 

धरती से नभ तक सुंदर खज़ाना बिखरा पड़ा है, 

निस्वार्थ प्यार के मोती, ज़रा से झोली में भर लूंं। 

प्रकृति ने हमको बसाया, वहीं हमसे प्रकृति बसी, 

याद रखना है बात हमको, तुम न भूलो, मैं न भूलूं। 

                   



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