बचपन की मित्रता
बचपन की मित्रता
कितने प्यारे से ख्याल बस गए हैं मन में।
लौट जाना चाहतें हैं बचपन के चमन में।
जहाँ हरे भरे पेड़ थे , फूलों का कुंज था।
कोयल की कूक थी, तितलियों का झुंड था।
सब साथ में रहते, न कोई उलझन न पहेली।
ढेर सारी सहेलियों में एक ही पक्की सहेली।
बगल में घर था दीवार फांदकर आते जाते।
साथ में घर पर खेलते या बाहर भाग जाते।
हर त्यौहार पर एक बड़ा कार्यक्रम करते थे।
मंंच बना,परदे लगा कॉलोनी को बुलाते थे।
तबादला होता गया अलग अलग शहरों में।
पीछे छूटा, सब बह गया समय की लहरों में।
धीरे-धीरे हम सब अपनी दुनिया में रमते गए।
भूल बचपन की मित्रता ,नए दोस्त बनते गए।
करीब चालीस साल बाद उसे मेरा नंबर मिला।
मैं पहचानी नहीं जब उसने मुझे फोन किया।
उसके बाद अब फिर दुबारा मिल गए हम।
सोशल मीडिया पर है हमारी मित्रता कायम।