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Amar Pratap

Abstract

3.5  

Amar Pratap

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एक लम्हा

एक लम्हा

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वो एक लम्हा,

अब बात बात में बात करता हूँ,

अपने में ही कुछ उलझे सवालात करता हूँ

खुद में खोकर खुद को पाने की कोशिश में हूँ। 

मैं हर दिन एक नई शुरुआत करने की कोशिश करता हूँ। 

वो एक लम्हाँ ही तो है,जिसकी चाह में खुद से लड़ने की कोशिश करता हूँ,

दौड़ता हूँ भागता हूँ और थक जाता हूँ,

वो एक लम्हा ही तो है,

जो एकदिन आयेगा और फिर से गुजर जायेगा।


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