जोकर
जोकर


एक महफिल सजी हो
सब मुस्करा लेते हैं।
दूसरों के हर अंदाज पे
सब ताली बजा लेते हैं।
पर सबके जेहन में
एक कोना छुपकर होता है।
जिसके खातिर जीवन में
सब को रोना अक्सर होता है।
फिर रंग मंच में ये
ठहाके कैसा है।
सब भूल प्रपंच में
जीवन जोकर जैसा है।
तो सब गम भूला कर
हम भी चल पड़े कुछ रोकर।
सब महफ़िल हँस रही
मैं भी दो गुना हँस दिया
बन जैसे जोकर।