लिखना चाहती हूँ
लिखना चाहती हूँ
लिखना चाहती हूँ बहुत कुछ
लेकिन अल्फाज नहीं मिलते
अपनी बातें समझाने के
कोई मौके नहीं मिलते
बताना चाहती हूं बहुत कुछ
अपने बारे में
लेकिन जब कलम उठाती हूँ
तो दिल के राज नहीं खुलते
आज बैठी हूँ लिखने
शायद कुछ लिख पाऊँ
लगता हैं कुछ कमी रह गयी मुझमे
जितना सोचती हूँ
लिखने के लिए
शायद वो काफी नहीं
मेरे लफ्जों में शायद वो असर नहीं
दिल की उलझनों में उलझे रहते हैं हमेशा
हमेशा शायद ये एहसास
काग़ज़ पर उतारने के लिए काफी नहीं !