गुमराह
गुमराह
इस कोहरे अंधेरे ने जब,
पनाह देनी चाही..
खिड़की से तब,
रोशनी की एक लकीर आई...
उसने हमें समेटना चाहा है...
और अंधेरा अभी भी गुमराह है..
इस कोहरे अंधेरे ने जब,
पनाह देनी चाही..
खिड़की से तब,
रोशनी की एक लकीर आई...
उसने हमें समेटना चाहा है...
और अंधेरा अभी भी गुमराह है..