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Piyosh Ggoel

Classics Others

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Piyosh Ggoel

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निर्धन की व्यथा

निर्धन की व्यथा

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आज निर्धनों, की व्यथा कथा सुनाता हूं

अभावों के जीवन का हाल बताता हूं

जिसे देखकर करते हो अनदेखा उस तरफ ध्यान दिलाऊंगा

जिनके जीवन में काटे भरे हुए , उनकी कथा सुनाऊंगा


निर्धनों को अपने तन का करना पड़ता व्यापार

इनके शरीर का लगता सरेआम बाज़ार

निर्धनों की चीखें नहीं पहुँचती संसद की दीवारों तक

वो ही सीमित रह जाती बस मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारों तक


लाखों माँ है जिनकी छाती सुखी पड़ी है

मुश्किल इनके लिए जीवन की हर एक घड़ी है

दूध के लिए बच्चे तरसते है

आंखों से आंसू झर झर बरसते है


सो जाते है भूखे ही हो के मजबूर

इनके सारे अरमान होते चकनाचूर

भूख से पीड़ित रह बिता देते है सारी जिंदगानी

इनके नसीब में न ही अन्न न ही पानी


कच्ची मिट्टी से बनती है निर्धनों की कुटिया

इनके लिए बड़ी चीज है गुड्डे और गुड़िया

इन्हें नहीं पता होता क्या होते खेल खिलौने

निर्धन नहीं सजा पाते अपने सपने सलोने


तन ढकने के लिए नहीं होता लिबास

ये निर्धन है, कुछ नहीं इनके पास

रहने के लिए भी नहीं होता कोई ठिकाना

इनको ठुकरा देता है पूरा ही जमाना


सो जाते आसमान को छत बनाकर

संतुष्ट हो जाते मात्र 1 निवाला खाकर

पैसों के अभाव में नहीं गवा देते है अपनी पहचान

रहने के खातिर नहीं होता इनपर कोई स्थान


जिससे बड़ी है न कोई लाचारी

निर्धनता है वो बीमारी

निर्धनों का जीवन अभावों में भरा हुआ है

हर सपना इनका कही पड़ा हुआ है


कागज़ों में बना देती है सरकारे कायदा

करती नहीं लागू फिर क्या है फायदा

कानून में नहीं लिखा इनके लिए प्रावधान

निर्धनों के मामले में तो चुप हो जाता संविधान


पर जिस दिन जागेगी नींद निर्धन आवाम की

हराम हो जाएगी नींदे देश के प्रधान की

होगी बगावत एक दिन गिर जाएगी सरकार

वक्त है अभी भी सुन लो निर्धनों की पुकार



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