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Ranjana Jaiswal

Classics

5  

Ranjana Jaiswal

Classics

चिड़िया

चिड़िया

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(एक )

चिड़िया उदास है 

उसे सुबह 

अच्छी लगती है 

देख रही है वह 

धरती के किसी भी छोर पर 

नहीं हो रही है 

सुबह।


(दो )

बिजली के पोल के

सिर पर बैठी 

एक चिड़िया 

धूप से नहा रही है 

कभी दायाँ 

पंख भिगोती है 

कभी बायाँ

कभी पूंछ 

तो कभी चोंच 

घूम-घूम कर नहा रही है 

चिड़िया


मैंने देखा है अभी-अभी 

उसने मारी है सूरज को आँख 

मुझे नहीं पता 

उसे धन्यवाद दे रही है 

कि जता रही है प्रेम 

पर इतना पता है कि 

आज कुम्भ नहा कर ही 

खिचड़ी खाएगी 

चिड़िया।


(तीन ) 

ओ री भोली चिड़िया 

तू ऐसी निश्चिन्त बैठी है !

जानती नहीं -"सावधानी हटी, दुर्घटना घटी" 

आजादी की उड़ान भरी है तो 

उड़, निरंतर फैला कर पर 

ताक में हैं शत्रु कई  

कि थके कभी तो तू 

और कसे उनका शिकंजा 

चिड़ियों की चल-आजादी के शत्रु हैं 

जो चल नहीं सकते 

जिन्हें उड़ना नहीं आता।


(चार )

धूप में तपकर काम से खटकर 

ज्यों मैं घर पर आती हूँ 

चीं-चीं करतीं मेरी सखियाँ 

मेरे पास आ जाती हैं 

कोई चूमती हाथों को 

कोई कंधे सहलाती हैं 

दाना-पानी कर लो जल्दी 

वे मुझको समझाती हैं 


कंचे जैसी इनकी आँखें 

जुड़ी लौंग-सी चोंच 

जैसे चाहे वैसे मुड़ जाए देह में ऐसी लोच 

इनकी छुअन से 

फर-फर करके मेरी थकान उड़ जाए

सुबह-सवेरे मुझे उठाती

रात को मगर जल्दी सो जाती 

दिन-भर चाहे रहें कहीं पर 

शाम-ढले वे घर आ जातीं 

मैं अब नहीं रही अकेली 

घर में मेरे कई सहेली।


(पाँच ) 

आजकल 

सुबह- शाम 

मेरे घर में गूँज रही है

सुखद चहचहाहट

मेरी बसंतमालती के 

फूलों से भरे 

पत्तों से सघन 

घर में 


चिड़ियों ने अपना 

घर-संसार बसाया है 

मैं नहीं जानती

कि उनके चिड़े भी

साथ हैं या नहीं 

कितने बच्चे हैं उनके 

मेरे काम पर चले जाने के बाद 

क्या करती है वे दिन-भर 

किस-किस डाल पर बैठती हैं 

कहाँ खाती-पीती हैं 


मैं तो इसी में खुश हूँ 

वे रहती हैं मेरे अकेलेपन के साथ 

कभी-कभी डर लगता है 

कहीं उन्हें भा ना जाए 

कोई दूसरी सघन फूलों-फलों भरी लता 

और मेरा घर फिर सूना हो जाए।


(छह ) 

उड़ती चिड़िया को

हसरत से देखती है 

पिंजरे की चिड़िया-आकाश में 

कैसी आजाद 

कैसी खुशहाल 

उड़ान बस उड़ान !


मौसम की चिंता से मुक्त 

समय से दाना-पानी 

देखभाल,सुकून 

इतना सब-कुछ 

सिर्फ पिंजरे में रहने के लिए 

कितने मजे हैं- सोचती है चिड़िया आकाश की

सोचती है चिड़िया आकाश की 

परों को हमेशा चलाते रहना 


घर ना ठिकाना 

कुंआ खोदना पानी पीना 

बहेलियों से प्राण-भय, मौसम की मार 

चुभना सबकी निगाहों में 

इतना जोखम 

सिर्फ आजाद रहने के लिए 

उदास हो जाती है चिड़िया

आकाश की 

उड़ती चिड़िया क्या जाने  दुःख 

पंख ना फैला पाने का।


(सात )

बहेलिया प्रसन्न है

उसने अन्न के ऊपर

जाल बिछा दिया है

भूख की मारी चिड़िया

उतरेगी ही।


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