अपना घर
अपना घर
आओ मिलकर नए सिरे से,
अपना घर सजाते हैं।
जहाँ हो घने पेड़ों की छांव,
और बसेरा हो चिड़ियों का।
छोटे छोटे कई घौंसले,
मेरे घर के आंगन में।
सुबह सुबह फुदकते पक्षी,
इस घर के सूनेपन में।
जहाँ होती रंग बिरंगी तितलियां,
फूलों पर मंडराती रहती।
उन्हीं फूलों की खुश्बू ही,
मेरे घर को महकाती रहती।
कहीं गिलहरी, कहीं गिरगिट,
कभी कभी मेंढक भी आते।
अपनी चहल पहल, अपनी रंगत,
यहीं कहीं बिखराते।
पेड़ों की ठंडी छांव जहां,
हम झूले झूल जाते।
कुदरत की अनोखी छटा को,
आंखों में बसाते।
आओ मिलकर नए सिरे से
अपना घर सजाते हैं।
