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Pankaj Kumar

Abstract

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Pankaj Kumar

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बरगद की छांव

बरगद की छांव

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जीवन बीता हरियाली में 

चंचल शीत हवाओं में 

आनंद ही आनंद मिला है 

इस बरगद की छाँव में 


इसकी लम्बी झटाओ में 

हमने भी झूले झूले है 

उन मस्ती के पलों को 

बिलकुल भी ना भूले है 


खुल कर ली है गहरी सांसे 

साफ और शुद्ध हवाओं में 

आनंद ही आनंद मिला है 

इस बरगद की छाँवों में 


यूँ हीं खड़े खड़े इसने 

कितनो का जीवन देखा है 

बचपन की मस्ती देखी है 

जवानी का अल्हड़पन देखा है


ख़ुशी के गीतों को गाता 

पींगों का सावन देखा है 

बड़े बजुर्गो की बातें 

कुछ कहा सुना भी देखा है 

दुःख में इक जुट हो जाने का 

गहरा प्यार भी देखा है 


हमने भी देखे हैं

जीवन के ग़म सारे  

इसकी धूप और छांवों में 

आनंद ही आनंद मिला है 

इस बरगद की छांवों में 


कुदरत की इस देन ने 

हमेशा ही देना सीखा है 

पक्षियों को इसी की शाखों पर 

नया जीवन जीते देखा है

 

कोई भी आफत हो 

पिता की तरह बचा लेता है 

बिजली कड़के या बादल बरसे

अपनी विशाल भुजाओं में छिपा लेता है 


गर्मी की बहती लू में या

सर्दी की शीत घटाओं में 

आनंद ही आनंद मिला है 

इस बरगद की छांवों में। 


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