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Pankaj Kumar

Abstract Tragedy

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Pankaj Kumar

Abstract Tragedy

सब कुछ पा कर भी पाया कुछ नहीं

सब कुछ पा कर भी पाया कुछ नहीं

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सब कुछ पा कर भी पाया कुछ नहीं

सब कुछ देकर भी तू लाया कुछ नहीं

रंग बिरंगी दुनिया है बाहर, पर बेकार है 

अंदर से खाली तू, तुझे भाया कुछ नहीं 


सब का वक़्त गुजर जाता है 

तेरा भी गुजर जायेगा, इस उम्मीद में था तू 

मन में दबा कर रखा और जताया कुछ नहीं 

अब हाथ खाली, आँखें नम है तेरे चाहने वालों की 


रुखसत होने के बाद लौटकर आया कुछ नहीं 

वक़्त रहते कर लिया होता जो दर्द को साँझा

ना होता मलाल किसी ने समझाया कुछ नहीं 


बंद आंखों में समा गई होगी दुनिया 

खुली आँखों में जो समाया कुछ नहीं 

सब कुछ पा कर भी पाया कुछ नहीं

सब कुछ देकर भी तू लाया कुछ नहीं।


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