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Prastuti Singh

Others

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Prastuti Singh

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कुछ उलझनें जिंदगी की

कुछ उलझनें जिंदगी की

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जिंदगी भी हमारी कुछ पतंग की डोर की तरह होती है

हम उसको अपने हिसाब से जितना जबरदस्त खिचते 

वो फिर टूट ही जाती, पर उसको प्यार से छोड़ देते तो वो 

न जाने कितना ऊपर और आगे तक चला जाता

हमारी जिंदगी भी कुछ ऐसी ही है, जितना सब 

हमें हमारी जिंदगी अपने शर्तों पे चलाते उतनी ही 

हमारी जिंदगी की उलझनें बढ़ती जाती है

पर इसको अगर प्यार से और साथ दे-दे तो

कितना आसानी से आगे बढ़ती रहेगी


इतनी छोटी बात अगर हम सब इतनी आसानी से समझ जाए

तो जिंदगी के कुछ मुश्किलें कितनी कम लगने लगेगी न

जब हमारे खुद की हाथों की उंगलियाँ एक जैसी नहीं है

 तो ये हम कैसे सोच ले की बाकी सबकी उंगलियाँ हमारे जैसा हो

तो ठीक उसी तरह जरूरी तो नहीं न की जैसे हम है, जैसा

हम चाहते हैं सामने वाला वैसे ही हो, और अगर वैसा न 

रहा तो वो बुरा और गलत है, हम ये कैसे तय कर सकते की 

वो बुरा या गलत है, वो सिर्फ हमारे जैसा नहीं है पर कुछ न

कुछ तो उसमें भी गुण होगा ही जो शायद हम में न हो

जैसा कि हमारी पांचों उंगलियाँ एक बराबर नहीं होती 

उसी तरह सब एक जैसे नहीं होते, पर वो इनसान बुरे थोड़ी होते...!! 



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