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ayushi bhaduri

Tragedy

5.0  

ayushi bhaduri

Tragedy

पिता होने की सज़ा

पिता होने की सज़ा

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एक बगीचे के कोने में एक बुज़ुर्ग थे बैठे

चुप-चाप सर झुकाए

किसी से वो कुछ ना कहते।


देखकर उन्हें मन में एक

अजीब सी बेचैनी हुई

लगा की पूछ ही लू

किस बात से आप लग रहे इतने दुःखी?


हिम्मत जुटाकर पूछ ही लिया

क्या हुआ है आपको?

कहने लगा, "फर्ज़ अदा करने की

सज़ा मिली है एक बाप को।"


जिसने नन्हें पौधों को सींचकर

पेड़ है बनाया,

खुद आधा खाकर भी जिन्हें

भरपेट है खिलाया 

आज मेरे दो वक्त के निवाले के लिए मुझे वृद्धाश्रम है छोड़ आया।


जिनके स्कूल के बस्ते कभी 

हम अपने कंधों पर लेते थे,

उन्हें तकलीफ़ ना हो इसलिए

गोदी में उठाके चलते थे,

आज बेटे का कद तो हो गया है बड़ा

पर बाप लगने लगा है सिर्फ़ बोझ और पराया।


आँखों से छलकते आँसू

जैसे कर रहे हो बयां

बाप बनना उतना आसान नहीं

माँ भले ही जन्म देती है पर बाप को बनना पड़ता है पूरे घर का सहारा।


संतान की मोह में अंधा होकर 

अपनी जीवन की सारी जमा पूंजी है खोया 

आज वास्तव में अंधा होकर ज्ञात हुआ

संतान के रूप में, मैंने बबूल का पेड़ था बोया।


नम आँखें सर झुका सा

बोल में थी थरथराहट

फिर भी लफ्ज़ों ने बोला,

"मैं खुद आधा खाकर भी,

तुम्हे भरपेट खिलाऊंगा

मैं खुद पैदल चलकर भी,

तुम्हे कंधे पर बिठाऊंगा 

मैं खुद तपती धूप में जलकर भी,

तुम्हारी पढ़ाई की फ़ीस भरूंगा

तुम भले ही मेरी बुढ़ापे की लाठी ना बनो,

पर मैं अपने पिता होने का फर्ज़ ज़रूर निभाऊंगा।"


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