तब हमें तंत्र की क्या जरुरत ? पीट लें छाती या पीट लें कप्पार परिजन निःसहाय थे अन्याय का परिदृश्य ... तब हमें तंत्र की क्या जरुरत ? पीट लें छाती या पीट लें कप्पार परिजन निःसहाय थे ...
फिर कुछ दिनों बाद सब मौन इंतजार में एक और निर्भया के। फिर कुछ दिनों बाद सब मौन इंतजार में एक और निर्भया के।
सबसे दुखद होता है जुबान होते हुए भी बेजुबान बने रहना, ताकतवर होते हुए तटस्थ रहना। सबसे दुखद होता है जुबान होते हुए भी बेजुबान बने रहना, ताकतवर होते हुए तटस्थ र...
उसका जीवन दुख और अपमान की वीर-गाथा है। संघर्ष और बलिदान से भरी एक दुखद कथा है। उसका जीवन दुख और अपमान की वीर-गाथा है। संघर्ष और बलिदान से भरी एक दुखद कथा है...
दुखद सदा ही हर दुख होता है , दुख न किसी को पहुंचाएं हम। दुखद सदा ही हर दुख होता है , दुख न किसी को पहुंचाएं हम।