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KUMAR POETRY

Tragedy

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KUMAR POETRY

Tragedy

फिर क्यों।।

फिर क्यों।।

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        फिर क्यों।।


लाखों टनों के हिसाब से अनाज पैदा 

होता है,फिर क्यों लोग भूख से मर जाते हैं,

लाखो कपड़े घरों की अलमारियों में बंद हैं

फिर क्यों, बच्चे नंगे घूमें जाते है।।


चाँद है, सूरज है, अनगिनत तारे हैं

फिर क्यों, असंख्य घरों में अंधियारे है,

समंदर है,बादल है,बारिश है फिर क्यों

पीने के पानी के लिए लम्बी कतारें है।।


दूध,छाछ,शर्बत पेय पीने को हैं,

फिर न जाने क्यों मदिरा पीने की बीमारी है,

जीवन की राहें बहुत है दुनिया में,फिर क्यों,

युवा पीढ़ी ड्रग्स के नशे में उलझी जारी है।।


माँ है,बेटी है, बहन है, पत्नी है, बहु है,

फिर क्यों, वो बुरी नजर की मारी है,

एक स्त्री की कोख से ही जन्मा है पुरुष

फिर क्यों,बेटियों की अस्मत लूटी जारी है।।


हर तरफ देखिए इमारतों का जंगल है

फिर भी क्यों, झोंपड़ियों में दुनिया बस्ती है,

कंही एक कोठी में चन्द लोग रहते है

फिर क्यों आवास की समस्या डसती है।।


अपार सम्पदाएँ प्रकृति ने दे रखी हैं

फिर क्यों, साधनों की लूट मारी है

हर जरूरत पूरी करती है, प्रकृति

फिर क्यों, प्रकृति के विरुद्ध ही काम जारी है।


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