STORYMIRROR

KUMAR POETRY

Abstract

4  

KUMAR POETRY

Abstract

वो माँ होती है

वो माँ होती है

1 min
159

वो माँ होती है

सन्तान को जन्म देने हेतू

अथाह प्रसव की पीड़ा को,

पूरी शक्ति से सह जाए

वो माँ होती है।


जो शिशु के कुछ न बोल

पाने पर भी, उसकी भूख प्यास

और तकलीफ तक समझ जाए,

वो माँ होती है।


सुबह सुबह पढ़ने के लिए

उठाती है, और गरम् गरम् 

चाय बिस्तर पर देने आती है

वो माँ होती है।


जो बिना बताए हमारी भूख को 

समझ जाती है,जिसके पास बच्चों

को खिलाने को हमेशा कुछ होता है

वो माँ होती है।


जब थक हुए घर आ कर

बिस्तर पर लेट जाते है हम

जो चुपके से रजाई उढ़ा जाए

वो माँ होती है।


जो बच्चों को डांट डपट और

प्यार से सही राह पर लाए,

उसकी तरक्की की नींव बन जाए

वो माँ होती है।


बच्चे उसे अपने पास रखे

या न रखे, जो वृद्धा आश्रम से भी

बच्चों की ताउम्र खेर मनाए,

वो माँ होती है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract