काश ! ऐसी सुबह भी आती कभी..
काश ! ऐसी सुबह भी आती कभी..
मन की गति को कौन जानेगा ,
कुछ भी कह लो कौन मानेगा ?
दोमुहां चेहरे लिए हों जब सभी ,
आपकी बातें क्यों मानेगा ?
बह रही ऐसी हवा चहुंओर अब ,
आदमीयत पर नहीं विश्वास जब !
हर किसी के हाथ खूं से हैं रंगे ,
अतिथि बन बैठा है अब हैवानियत !
रंग अब गिरगिट नहीं बदला करे हैं ,
शख्स अब हर पल बदलता रंग है !
किस तरह से स्वार्थपरता पूर्ण हो ,
हृदय उसका हर तरह से तंग है !
काश ! ऐसी सुबह भी आती कभी ,
दाग़ दामन के मिटा देती सभी ।
स्वार्थ में जो खो गया है आदमी ,
शुद्ध हो जाए यूं कि जैसे चांदनी !