मौन साधना
मौन साधना
स्याही सूख गई लेखन में, भाव लगे कागज खाने
मूक स्वर को मुखरित करना, मौन साधना ही जाने
मन चितवन की चिंता कैसी, कैसे क्रंदन करना है
सुप्त भावना कैसे लिख दे, कितना वंदन करना है
कोरे पन्ने की आशा को, किसने कितना जाना है
कितना तुझको खोना है, कितना तुझको पाना है
दूर तलक तक ओझल है, सपनों की सच्ची भाषा
हार जीत ना अंतिम है, हिम्मत फेंक रही पासा
घुट-घुट जीने से अच्छा, सांसो का बस थम जाना
मन का पावन हो जाना, तन की क्षुधा जम जाना
जिस पल ना आराम मिले, वो पल बुरा बन जाता
कड़वी यादों से होकर , वो कल अधूरा बन जाता
खट्टी मीठी यादें कल की , जीवन सुंदर करती है
गम के ताजा घावों को, मरहम बनकर भरती है
निश्छल निर्मल मन होगा, वाणी भी मधुरम होगी
कटुता का संकुचन होगा, मन की कुंठा कम होगी
जब सुरभित होकर फैलेगा, सृष्टि में सुयश तेरा
अंतःकरण पावन होगा , टूटेगा विष का घेरा
मन भौंरे की प्रीत पुष्प में, प्रेम बांधना ही जाने
मूक स्वर को मुखरित करना, मौन साधना ही जाने।