ये कैसा प्रमाद
ये कैसा प्रमाद
1 min
311
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सटीक बैठते भावों का उद्वेग
मेरे मन का वेग आप तक संप्रेषितः-
ये कैसा प्रमाद?
है व्याकुल जीवन के विवाद
अनंत में, शून्य का प्रवेश
प्रीत में ,अप्रतिम है द्वेष
शांत है, लहरों का उफान
है प्रबल,भावों का तूफान
प्रेम भी बन बैठा विषाद
है व्याकुल जीवन के विवाद
ये कैसा प्रमाद?
चेतना भी है, जड़ का मूल
पुष्प बन बैठे, उर के शूल
मन के, विस्मृत है उसूल
मनुष्य बना है, रज की धूल
गगन के बंधन है आजाद
है व्याकुल जीवन के विवाद
ये कैसा प्रमाद?
सुप्त है प्रज्ञा ,तन में भार
गौण है, गीता का भी सार
पड़ी है कैसी, काल की मार
हुए है ,खंडित सब आधार
हो रहा शिव तांडव का नाद
है व्याकुल जीवन के विवाद
ये कैसा प्रमाद?
