आंसू और दर्द
आंसू और दर्द
आंसू क्या? जाने इस दर्द को वो तो,
बहता ही रहता है।
वास्तविकता तो पूछो उससे,
वो क्या कहता है।
दर्द ही तो दर्द जानता है।
आंसू आंखो से ख़ुद बिखर जाता हैं।
जैसे कोई फेकता हो खोलता पानी।
कोई रोके या न रोके, पर दुपट्टा रोक लेता है।
आंसू क्या ? जाने इस दर्द को वो तो बहता ही रहता है।
प्रेम अपने ही काबू कर आशियाना बना लेता है
जब रूठ जाता हैं इक पल के लिए।
मासूम सी जिंदगी छोड़ देता है।
आस लगा बैठी हूं मैं ,
इक दिन वो आयेगा।
मेरे सपनों के तस्वीर बना कर,
अपने ही दिल में बसाएगा।
वो हमारा हो या न हो,
पर आंखो में आंसू क्यों आता है।
आंसू क्या? जाने इस दर्द को वो तो बहता ही रहता है।
वो भूल गया था मेरे यादों में।
वो बसा हुआ उसकी मुस्कान मेरे ख्वाबों में ।
मै कैसे कहूं न कह पाऊ।
वो हंसता था बात ही बातो में।
उसकी चिठ्ठी पढ़ पढ़ मै रात गुजारी।
मुझे नींद न वो दे गया अपने मुस्कानों की परछाई।
मुझे न पता था वो मुझे इनकार करेगा।
खुमार जैसी दिल थाम कर बैठी हूं।
क्या ? मुझसे प्यार करेगा।
प्रेम क्या जाने इस काम को,
वो तो तोड़ कर चला जाता है।
आंसू क्या ?
जाने इस दर्द को वो तो बहता ही रहता है।

