कल मेरे ख्वाबो में वो आई थी।
कल मेरे ख्वाबो में वो आई थी।
मैं सपनों में खोया रहा
चैन की नींद सोया रहा
सुबह की किरणों ने मुझे घेर लिया।
आंखें खुली तो सपनों ने मुंह फेर लिया।
अब मैं याद कर करके सपने को मुस्कराता रहा।
क्योंकि सपने में वो भी तो मुस्कराई थी।
कल मेरे ख्वाबों में वो आई थी।
उलझन मेरी अजीब है
मैं उसे जानता भी नहीं ना कभी देखा है।
कभी कभी नजर आ जाती, किस्मत की ये रेखा है।
मैं उसे उजालों में ढूंढता हूँ
वो गुमनाम अंधेरों में नजर आती है।
मैं उसे ना सोचूं सोचकर भी सोचता हूँ
कुछ इस तरह मेरे ख्यालों में आ जाती है।
कभी तो लगता है वो कोई और नहीं
शायद वो मेरी ही परछाई थी
कल मेरे ख्वाबों में वो आई थी।
कभी कभी यूं ही नहीं सब कुछ हासिल हो जाता
कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है।
जगती हुई रातें भी सपने नहीं लाती
सपने देखने के लिए भी सोना पड़ता है।
मेहनत करनी होती है फल की इच्छा बिना किये
खुशियों की फसल काटने से पहले बोना पड़ता है।
ये सब बातें उसी ने मुझे सिखाई थी।
कल मेरे ख्वाबों में वो आई थी।
उसकी बिखरी जुल्फें, लहराते हुए बाल
मुस्कराता चेहरा , लगती वो कमाल
लेकिन उसे देखा जब मैंने करीब से
थोड़ी परेशान थी वो, उससे मैंने पूछा हाल
बिना कुछ कहे उसने मेरी आँखों में देखा
मैं उसकी गहरी आंखों में खो गया
मिट गए मेरे सारे सवाल
याद है मुझे फिर उसने पलकें झुकाई थी।
कल मेरे ख्वाबों में वो आई थी।
मैं हर दर्द को अपने भूल गया
ख्यालों में अपने इस तरह झूल गया।
नाम तक उसका ना पूछा
ना ही वो खुद कुछ बता पाई थी।
कल मेरे ख्वाबों में वो आई थी।