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sonu santosh bhatt

Abstract Inspirational

4  

sonu santosh bhatt

Abstract Inspirational

एक दिन

एक दिन

2 mins
350


एक दिन ये जमीं और आसमां

सब अजनबी हो जाएंगे।

हम होंगे इसी जहां में

नजर किसी को नहीं आएंगे।

जिंदगी तू मुझे तड़पा ले जितना तड़पाना है

तुझे भी तो एक दिन पराया हो जाना है।

मैं जानता हूँ गुरूर तुझे भी कुछ नहीं अपने होने का

ना तुझे शौक है मुझे चलती राहों में खोने का।

कुछ ख्वाब तेरे भी तो मुकम्मल नहीं हो पाएंगे

एक दिन ये जमीं और आसमां

सब अजनबी हो जाएंगे।


मैं उड़ते पंछी को देखकर 

अपने मन के पर नहीं फरफराता हूँ।

सुबह ये सोचकर निकलता हूँ

कि शायद ही लौट पाऊँगा घर

और शाम को अगले दिन फिर जाने की

सारी उम्मीदें छोड़कर घर आता हूँ।

एक पल का नहीं भरोसा फिर भी मुस्कराते हुए

ए जिंदगी सिर्फ तुझको गले लगाता हूँ।

तुझसे भला क्यों हम जुदा होना चाहेंगे

एक दिन ये जमीं और आसमां

सब अजनबी हो जाएंगे।


मैं जमाने का राही, सोच सोच के कदम बढ़ाता हूँ

धीमे धीमे, कहीं जमाना जाग ना जाये

दबे पाँव, कहीं मेरे पैरों की आहट सुनकर

जमाने की निद्रा भाग ना जाये

अगर जमाना जाग गया 

तो जमाने के लोग बेवजह मुझे सौ बाते सुनाएंगे

एक दिन ये जमीं और आसमां

सब अजनबी हो जाएंगे।


मैं तुझसे कभी नाराज था ही नहीं जिंदगी

मैं तो हमेशा से तुझे मनाता रहा हूँ।

तू नहीं जानता तुझे जीने के लिए

मैं चुपचाप खामोशी से कितने दर्द सहा हूँ।

तेरे लिए दर्द चेतना और मेरे भावनाओं का दुखना

ये कोई बड़ी बात तो नहीं होगी।

लेकिन मैं इस चिंता में डूबा रहता हूँ,

कही ये मेरी आखरी रात तो नहीं होगी।

तू नाराज मत होना कभी मुझसे

हुआ तो किस तरह तुझे मनाएंगे

एक दिन ये जमीं और आसमां

सब अजनबी हो जाएंगे।


मुझे मेरे कलम ने ताकत दी है जीने की

मैंने स्याहियां भी तो बहुत बिखराई है 

कोरे पन्ने की अहमियत ही क्या थी 

वो भी स्याही की वजह से निखर आई है।

तू रूठ रूठ के जो इस तरह तड़पा रही है।

हम भी रूठकर एक दिन तुझे तड़पायेंगे

एक दिन ये जमीं और आसमां

सब अजनबी हो जाएंगे।

हम होंगे इसी जहां में

नजर किसी को नहीं आएंगे।



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