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sonu santosh bhatt

Romance

4  

sonu santosh bhatt

Romance

समझदार हो गयी हो तुम

समझदार हो गयी हो तुम

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मेरी नाराजगी भी जायज है तुम्हारा गुस्सा भी

खलती तो तुम्हे भी होगी तन्हाई कभी कभी

अगर नही खलती तो समझ लो तन्हाई के लिए

वफादार हो गयी हो तुम

लगता है समझदार हो गयी हो तुम।

भले अब मत मानो कहना मेरा

चुभता तो तुम्हे भी होगा ही

इस तरह मायूस दूर दूर बैठे रहना मेरा

मैं साथ हूँ या नही हूँ।

तुम्हारे लिए मैं दूर ही सही हूँ।

अगर मेरी बात लगे बुरी

तो बरसा देना अंगारे मुझपर

गुस्ताखी बिल्कुल न सहना मेरा

दे देना ईंट का जबाब पत्थरों से।

मगर आंखे नम तो तुम्हारी भी होती होगी

देख नही पाते होंगे आंसुओ का बहना मेरा।

मैं कभी नही कहता मुझे तबज्जू दो

ना कभी अलग से प्यार मांगा

तुम्हारी जीत की खुशी का जश्न बनाने की चाहत में

खुदा से मन्नत में अपने लिए हार मांगा

कभी सोचा भी नही था कि

तुमसे हारते हारते एक दिन तुम्हे हार जाऊँगा

तुम्हारे लिए बदल लिया खुद को पहले से बहुत

अब लगता नही खुद के लिए कभी सुधार पाऊँगा।

तुम जिंदगी में तो नही हो मेरी लेकिन दिल के लिए

यादों से लिपटी भार हो गयी हो तुम

लगता है समझदार हो गई हो तुम।

रिश्तों की बुनियाद बेहद कमजोर थी

तय था इस रिश्ते के साथ ढहना मेरा

लेकिन याद हर एक लफ्ज़ है मुझे

तुम कहा करती थी तुम ही हो गहना मेरा।

मुस्कराउं तो कैसे कोई वजह कभी मिलती नही

बेवजह मुस्करा लूँ,

ऐसी मुस्कान चेहरे में कभी खिलती नही।

वो कोई और था जो कल तक

अंदर बाहर घूम रहा था मेरे दिल के

तुम होते तो शायद ठहर जाते दो पल

मगर अब तो सिर्फ यादें ही बची है

जो कोशिशों से भी नही रहे निकल।

यादें तो सिमट गई लेकिन दिल से बेदखल

इस बार हो गयी हो तुम

लगता है समझदार हो गयी हो तुम।

तुमपर क्या इल्जाम लगाऊ की छल गए हो

शायद भोलेपन का था मुखौटा पहना मेरा

भले अब मत मानो कहना मेरा

चुभता तो तुम्हे भी होगा ही

इस तरह मायूस दूर दूर बैठे रहना मेरा

कहते भले थे कि टूट जाएंगे तुम्हारे बिना

लेकिन लगता नही तार तार हो गयी हो तुम

लगता है समझदार हो गयी हो तुम



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