महाप्रयाण की ओर
महाप्रयाण की ओर
मैंने महाप्रयाण की तैयारी,
अब कर ली है।
वो जीर्ण शीर्ण स्वप्नों की गठरी,
कचरे के डिब्बे में फेंक दी है
कितने दिनों से थी संभाली
साज संजो कर देखीभाली
अटारी के कोने में उपेक्षित सी पड़ी थी बेचारी
अब उसकी अंतिम तारीख़ तय कर दी है।
मैंने महाप्रयाण की तैयारी अब कर ली है।
वो खद्योत भरी माचिस की डिब्बी।
वो सहेज कर रक्खे सीपी और शंख।
वो रंग बिरंगे तितलियों के पंख।
जो अब उड़ने के काम ना आयेंगे
कोमल थे वे सारे, भला कब तक साथ निभाएंगे।
उसमे वो रूमाल भी रख दिया है
जिसमे रिश्तों पर जमी मोटी बर्फ की परत
बांध कर रक्खी थी।
अब वो रूमाल भी कुछ सूख सा,फट सा गया है
कुछ आँसू, कुछ पुरातन सिक्कों का संग्रह
कुछ मुड़े तुड़े डाक टिकट
जो थे हृदय के बहुत निकट
उसमे सब बंद है।
अब मैं स्वतंत्र हूं स्वच्छंद हूं
वो पुरानी डायरी जिसमे मेरी पसंद के
कुछ गीत लिखे थे
वो सखियों से गुपचुप बातें
वो तारे गिन गिन कटती रातें
वो मंद बातास से डोलती शाखें
जिन पर झूलती थीं कनक छड़ी सी
सब सखियां मोतियों की लड़ी सीं
उन सबसे मंजूरी ले ली है
मैंने महाप्रयाण की तैयारी अब कर ली है।
हां, मुझे सजना संवरना अब भी अच्छा लगता है
पर कुछ आंखों में वह भी खटकता है।
अब मैं दिवास्वप्न नहीं देखती।
प्राचीन वस्तुएँ नहीं सहेजती।
बस रक्खी है मां की एक साड़ी अलमारी में।
उसे कभी कभी निकाल कर ओढ़ लेती हूं।
भूत और वर्तमान से मुख मोड़ लेती हूं।
मैंने अनागत की आँखें पढ़ ली हैं।
मैंने महाप्रयाण की तैयारी अब कर ली है।
कुछ भूले बिसरे स्वप्न, अब भी उद्घोष करते हैं
कानों में तूमुल नाद से
अपने चिरपरिचित अस्फुट से स्वर में
नाहक शोर मचाते हैं
मैंने कानों पर हथेली रख दी है।
उनसे भी सन्धि कर ली है
परिश्रांत पथिक अब क्लांत हो चला
प्रस्थान की तैयारी कर ली है।
मैंने महाप्रयाण की तैयारी अब कर ली है।
