चपला
चपला
घन उर में चपला बसती
कांति दिखा वह है हँसती
शक्ति महा घन में भरती
दुर्बलता घन की हरती।
मेघ धरे हिय में उसको
कविवर कुलिश कहें जिसको
चमक मनोहर है लगती
चेतना चित्त नवा जगती।
शब्द भयंकर है करती
भाव कई हिय में भरती
कारण दारुण भय बनती
शक्ति युवा जन की जनती।
शोध अनेक दिए जन को
भेद विशेष मिले मन को
शोषित की नवशक्ति बने
शोषक जागृति भीति घने॥

