" हलधर की पीड़ "
" हलधर की पीड़ "
अब कोई ना समझता, हलधर तेरी पीड़।
वसुधा ही आसन बना, सड़क किनारे नीड़।
सड़क किनारे नीड़,शीत लहर तन जमाये।
लू जी का जंजाल, बरसात खूब डूबोये।
कहै 'जय'सच मौसम, की मार सहता वह सब।
फिर भी हक के लिए, दुत्कारा जाता बस अब।
अब कोई ना समझता, हलधर तेरी पीड़।
वसुधा ही आसन बना, सड़क किनारे नीड़।
सड़क किनारे नीड़,शीत लहर तन जमाये।
लू जी का जंजाल, बरसात खूब डूबोये।
कहै 'जय'सच मौसम, की मार सहता वह सब।
फिर भी हक के लिए, दुत्कारा जाता बस अब।