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Kusum Lakhera

Horror Tragedy Fantasy

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Kusum Lakhera

Horror Tragedy Fantasy

दुःस्वप्न ....

दुःस्वप्न ....

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वह अक्सर सोना नहीं चाहती थी ...

सोते ही नींद में वह न जाने कहाँ खो जाती थी ...

वह भटकती थी दुःस्वप्नों के जंगल में ....

कई बार वह डरावने सपने से इतनी डर जाती थी ..

कि एक तीखी चीख उसके मुख से निकल जाती थी ..

वह बोलना चाहती थी ...पर ....बोल नहीं पाती थी ..

सपनों में देखती थी ...कुछ अजीबोगरीब दृश्य ...

कुछ भयानक आवाज़ें सुनती थी ....

कुछ चीजें जो कभी पहले नहीं देखी हों ...

वह देखती थी ...मानो सच ही कोई घटना घट रही हो....

वह देखती थी उफनती हुई नदी ...मानो

प्रलय मचा रही हो ....टूटे हुए पुल को....

गिरते हुए पहाड़ को ....ध्वस्त होते हुए मकान को ....

जंगल के चीत्कार को सुनती थी ......

वह देखती थी टूटे हुए पेड़ ...

वह देखती थी विशालकाय पशु ...

बड़े बड़े स्वानो को भौंकते हुए सुनती थी

यही नहीं उन्हें अपने ऊपर झपटते हुए भी देखती थी ..

ऐसे में उसकी चीख निकल जाती थी ...

वह पसीने से तरबतर हो जाती थी ...

फ़िर उस रात वह सो नहीं पाती थी ...

और ..यही सोचती थी कि उसे ..

भयानक दुस्वपनों से कब मिलेगी मुक्ति ..

क्योंकि दुःस्वप्न को वह अभिशाप सा कब तक 

ढोती रहेगी ..क्या वह आजीवन यूँ ही रोती रहेगी ?



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