कई साल बड़ी हूँ
कई साल बड़ी हूँ
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बरसों मैं ज़माने के हवादिस से लड़ी हूँ
यूँ उम्र से अपनी मैं कई साल बड़ी हूँ
हर बज़्म की तक़्मील मेरे बिन है अधूरी
क्यूँ लोग समझते हैं के कमज़ोर कड़ी हूँ
सूरज भी जहाँ पाँव के नीचे नज़र आये
मैं अज़्म की कुछ ऐसी बुलंदी पे खड़ी हूँ
तक़्दीर ने जो भी दिया उस पर रही शाक़ीर
ख़्वाहिश है कोई और न किसी ज़िद्द पे अड़ी हूँ
दीबा है मेरा नाम मेरे रुप कई हैं
हूँ धूप कहीँ और कहीँ सावन की झड़ी हूँ
Aafreen Deeba