Aafreen Deeba

Abstract

2.0  

Aafreen Deeba

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बचपन

बचपन

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खट्टी मीठी नमकीन सी बचपन की कुछ यादें हैं

 महफ़िल तो सजाओ यारों बचपन की कुछ बातें हैं 


तब खिलौनों के टूटने से घर सर पर उठ जाता था

 आज दिल के टूटने पर तड़प भरी कुछ रातें हैं


 तब घंटों बतियाते थे फोन पर जब एस टी डी बिल आता था 

तब एक दूजे के घर जाकर दोस्ताना निभाया जाता था


तीन महीने का डाटा पैक अब यूं ही खत्म हो जाता है 

कहने को तो दोस्त हजारों पर दिल किससे मिल पाता है


 लहू से कुछ रिश्ते हैं जो आज पराए से बन बैठे हैं

 और दूर देश के अनजाने वो हमसाए से बन बैठे हैं


 एक ही थाली के चट्टे बट्टों से मिलने से भी अब घबराते हैं

 सोशल मीडिया फैन फॉलोइंग से मिलने को तड़प जाते हैं 


 बचपन छूटा तारे गिनते और जवानी सर पर आ गई 

 घर गृहस्ती मोह माया दौलत इन सब में उलझा गई 


 हुआ सामना हक़ीक़त से तो देखा जवानी भी छूट गई ।

 रेत मोती मुट्ठी मे थे मोती छूट गई रेती हमसे रूठ गई


तूने जिस राह में चलाया जिंदगी उसी राह पर हम चल दिए 

तू भविष्य पर जीती रही हमने तुझको कई कल दिए


 एक पल को तो आजा ए ज़िंदगी की सांस जा रही है

 सुनहरी धूप भी स्याह तारीक़ सी के मौत पास आ रही है ।।



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