STORYMIRROR

Aafreen Deeba

Tragedy

3.4  

Aafreen Deeba

Tragedy

बेरोज़गार की बेटी

बेरोज़गार की बेटी

2 mins
156



गया था कुछ कमाने के लिए जो गांव से ज़िद में

सिमट कर रह गया वो था मगर हालात की हद में

ज़माने में गुरूर उस का था,बेटी आस थी उसकी

वो ऐसा बाप था , बेटी बहुत ही खास थी उसकी

कहानी ये उसी बेटी की मैं सब को सुनाती हूँ

मैं अपनी आंख से सच्चाई दुनिया की दिखाती हूँ

ज़माना हंसता था कह कर उसे बेरोज़गार की बेटी 

मगर हालात से लड़ती रही बेरोज़गार की बेटी !


सितम टूटा था उस पर बाप के दुनिया से जाने पर

गमों की बिजलियाँ गिरने लगी थी आशियाने पर

अज़ाब अब हो उठी थी एक रानी के लिए दुनिया

उकाबों की तरह झपटी जवानी के लिए दुनिया

वो रोती थी तड़पती थी बहोत फरियाद करती थी

बहोत रँजूर हो कर बाप को वो याद करती थी

वो ठंडक बाप की आंखों की थी जो नूर की बेटी

मगर हालात से लड़ती रही मज़दूर 

की बेटी !


फिर ऐसा वक़्त भी आया कि भूखे पेट सोती थी

मगर खुद्दार वो लड़की हमेशा खुश ही होती थी

मज़ाक़ ऐसा न जाने क्यों मुक़द्दर ने किया उस से

सहारा बाप का साया था वो भी छिन गया उस से

ये दुनिया जब भी उस को ताने दे दे कर सताती थी

वो अपने बाप को अपने तसव्वुर में बुलाती थी

वो जो थी बाप की आंखों में रानी , हूर की बेटी

मगर हालात से लड़ती रही बेरोज़गार की बेटी !


मरासिम जो थे दुनिया से सभी वो टूट कर बिखरे

पता तब ही चला थे किस तरह ये खोखले रिश्ते

बुरे होते गए दिन ,भूख ने बेज़ार कर डाला

न सह पायी वो फिर , हालात ने लाचार कर डाला

अजब चाहत फिर उस के दिल मे घर अपना बना बैठी

वो अपने बाप से मिलने क़ज़ा के संग जा बैठी

कहा दुनिया ने उस को थी किसी मग़रूर की बेटी

मगर हालात से लड़ती रही बेरोज़गार की बेटी!



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy