मेरी औक़ात की चादर
मेरी औक़ात की चादर
मेरी औक़ात की चादर को मैं रुसवा नहीं करती
ज़रूरत से ज़्यादा पाँव फ़ैलाया नहीं करती
हक़ीक़त की महक़ हो जिसमें वो नग़मा सुनाती हूँ
तरफ़ तारीफ़ मैं झूठो के गुन गाया नहीं करती
कली से फूल भी बनती नहीं मैं और झुलस जाती
मेरी माँ अपने आँचल क अगर साया नहीं करती
मेरी आदत है मैं खाने से पहले देख लेती हूँ
पड़ोसी को मैं भूख़ा छोड़ कर खाया नहीं करती
ख़बर इस हाथ की उस हाथ को होने नहीं देती
किसी की मैं मदद करती हूँ तो चर्चा नहीं करती
किसी के घर की ज़ीनत हूँ हया का पास्ब है मुझको
कोई उँगली उठायें मुझ पे मैं ऐसा नहीं करती
सुनो आफ़रीन मुझे अपने ख़ुद्दारी पे जीना है
कभी चढ़ते हुए सूरज़ का मैं सजदा नहीं करती।