कोरोना और आम जनजीवन
कोरोना और आम जनजीवन
कितनी अजीब बात हो गयी है न,
सिर पर मानो मौत का साया मंडरा रहा है।
बड़ी बड़ी बीमारियों से लड़ने वाला इन्सान,
किसी की एक छींक से भी घबरा रहा है।।
घर से न निकलना मजबूरी हो गयी,
कहीं न कहीं ये दूरियां भी बढ़ा रहा है।
ऊपरवाला ही जाने कि वो हम पर,
ना जाने क्यों इतना जुल्म ढा रहा है।
सड़कें वीरान हैं, गालियां गुमनाम सी,
कोरोना संसार को शमशान तक ले जा रहा है।
ले रहा गिरफ्त में बच्चे बूढ़े जवानों को,
अपनी भूख मिटाकर दुनिया को तड़पा रहा है।
राशन दुकानें बन्द हैं,और काम भी;
गरीबी तो थी ही,अब कोरोना भी सता रहा है।
तुम तो बन्द कर लोगे खुद को चारदीवारी में,
लेकिन उसका क्या जो आज भी ईंट जुटा रहा है।