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Anupama Chauhan

Abstract Children Stories Fantasy

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Anupama Chauhan

Abstract Children Stories Fantasy

शहर के आमरस और गांव की अमियाँ

शहर के आमरस और गांव की अमियाँ

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चुपके से चुराना काका की बगिया से,

खट्टे मीठे और रसीले से वो आम।

शहर के आमरस में आजकल,

कैसे लगाऊं ताज़े फलों के दाम।।


डरना भी और हिम्मत भी जुटाना,

ऐसी चोरियों की तब खीरभात होती थी।

वो बना के दोस्तों की एक टोली ,

जाने किस घर में दिन और कब रात होती थी।


वो दोपहर में सबके सोने के बाद

ना डरना कभी सीमा रेखा पार करने से।

वो धूप की ताप भी तब प्यारी लगती थी,

 घरवालों का डंडा लेकर इंतज़ार करने से।


मौसम भी अलग सा लगता है,

शहर में वो गांव की मिठास नहीं आती।

बन्द बोतलों में बिकता है सब कुछ,

पर वो सूखे कंठ वाली प्यास नहीं आती।


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