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Anupama Chauhan

Abstract Tragedy Thriller

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Anupama Chauhan

Abstract Tragedy Thriller

हॉस्टल का मेस

हॉस्टल का मेस

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"तुम खाना नहीं फेंक सकती हो !"

इस एक आवाज़ से मेस में सन्नाटा छा गया।

जिनको सब्जी पसंद न थी ये वाली,

उनके मुँह में भी मानो स्वाद आ गया।।


पकी हुई घर की भिन्डी न खाने वाली,

कच्चे सब्जी को बेस्वाद चबा रही थी।

और लग रहा था वो भिन्डी मेरे प्लेट में,

आज देख मुझे मेरी ही हंसी उड़ा रही थी।।


फ़िर किसी ने कहा कि सब्जी न खाना,

आज सब्जी कच्ची होने से फेंकने की छुट है।

मन तो कर रहा था चिल्लाऊं जोर जोर से,

ये जो हमें खिला रही थी वो बेवकूफ़ है।।


कुछ ऐसी ही कच्ची पकी सब्जी से गुजारा हुआ,

फ़िर एक नया कानून बन जाने से जान आने लगी।

कि जो मेस लीडर होती थी हॉस्टल की हमारी,

सब्जी सबसे पहले उसे ही चखायी जाने लगी।।


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