बेवफ़ा:प्यार खो रहा था
बेवफ़ा:प्यार खो रहा था
उसे उस रास्ते पर जाते देख,
कभी सोचा न था कि आखिरी दफ़ा होगा।
ऐसी नज़र लगी किस्मत को मेरी,
मालूम न था खुदा मुझसे इतना खफ़ा होगा।
मैं गांव की गोरी, वो शहरी बाबू हो चला,
अब रिश्तों में भी नुकसान -नफ़ा होने लगा।
किसी और की पसंद बन गया वो,
अब वो हमराही शायद बेवफ़ा होने लगा।
किसे दोष दें खुद को, या मोहब्बत को,
जो किसी गैर से अब हर दफ़ा हो रहा था।
जिसे पूजा देवता समझकर हमने,
वो इंसान अब किसी और का मुस्तफ़ा हो रहा था।
प्रेम और विरह का तो पुराना नाता है,
कुछ ऐसे ही हमारा प्यार हमसे खो रहा था।।