यात्रा
यात्रा
ले जाये जाते हुए
उस ओर
मूक होती इंद्रियों से
सबको जीव इतना ही
जता पाया
'माफ कर देना"।
इस ओर मैंने
स्पष्ट सुना उसके मन
का आर्तनाद
उस जीव का भय,
अकेले अंजान यात्रा पर
बेमन से खींच
ले जाये जाने का।
यह क्षमाप्रार्थना
चेष्टा होती है कहने की
रोक लो मुझे
कोई साथ दो मेरा
किंतु कुछ
नही किया जा सकता।
जीवन के पूर्व
और बाद की यात्राये
सबकी ही
एकाकी होती हैं ।
विसर्जन के बाद
बस कुछ पल
मौन ही साथ होता है।

