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Dharm Veer Raika

Horror Classics

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Dharm Veer Raika

Horror Classics

सफर के मुसाफिर........।

सफर के मुसाफिर........।

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ए चलने वाले मुसाफिर चल

हे रास्ते का मुसाफिर चला चल

सफर के पहिए है गोल,

 सफर बहुत नाकाम बजेंगे ढोल,

सफर के मुसाफिर।


 ए मुसाफिर चला तेरी गाड़ी के पहिए

मैं भी देखता हूं कितने घूमते हैं तेरे पहिए,

अगर पंचर हो गए तो कौन आता पास,

 उसी क्षण समझ लेना वही है तेरा आस,

सफर के मुसाफिर।


 मैं सफर का पेड़ बैठाता हूं मुसाफिर

थक जाते हैं चलते चलते मुसाफिर

कहता हूं थोड़ा पानी पी और चलना है 

तेरी मंजिल में बहुत धूप मेंचलना है

सफर के मुसाफिर।


आखिर जो मिले सफर में आए पिलाने पानी

ध्यान कर बैठ जाना यही है मंजिल की रानी

इतना ही चला तो क्यों बैठा थककर

अब तो सीधी रोड़ में भी है टक्कर

सफर के मुसाफिर।


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