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Dharm Veer Raika

Abstract Romance

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Dharm Veer Raika

Abstract Romance

जिंदगानी सफ़र.....

जिंदगानी सफ़र.....

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सफर की गलियां बड़ी सुहानी लगती है,

 बात मुसाफिर की नहीं राहगीरों की है

 मिल जाए कोई हमसफर‌ राही,

मंजिल मिले या ना मिले सीख जरूर मिले,

 लगता है सावन के सुहाने मंडराए बादल,

 शरद रात्रि का पहला चंद्र –सा मुखड़ा,

 बसंत की खिलती धूप का नजारा,

 सरोवर के शांत तट का किनारा,

 कलम तोड़ मिला मेरा कविया,

 सफर की गलियां बड़ी सुहानी लगती है,


मिल जाए अपने तो कुछ खास होती है ,

तुम मेरी लालटेन की बत्ती हो ,

चलती कलम की तीखी नोक हो,

 तेरे बिना सब सुनसान लगता है ,

गुजार लूंगा तेरे साए ,ए जिंदगानी ,

तेरे सफ़र की बात का बखान करूं,

 बस तुम साथ चलती रहे जिंदगानी,

 यूं अलविदा कह मत चले– चले,

साथ निभा मेरा हर सफर तक,

 बिना तुम्हारे लगती एक अधूरी कहानी,

 खुशबू– बदबू तेरे में बस्ती ,

बस सुंघनी नासिक अच्छी हो ,

पेट भरने की पोटली शब्दों की हो ,

बखान करूं क्या तेरा जिंदगानी,

 लंबी उम्र बितानी तेरे संग में,

 तरस– तरस रोने से क्या होगा,

 तेरे को भी मेरे लिए परेशान होना पड़ेगा,

 इस दुनिया में तेरा खास अभिवादन होगा,

 सफर की गलियां बड़ी सुहानी लगती है....। 


        


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