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Dharm Veer Raika

Others

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Dharm Veer Raika

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हारे कहां....

हारे कहां....

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वो बुझी आग फिर से धधक रही ,

देख देख यह पगडंडी मंजिल को जाती है, 

कह दो अंधियारों से फिर से आलोक छाएगा ,

अभी कच्ची झोपड़ी में आशिया बना रहे हैं ,

बोली लग गई हमारी नीलामी कर लो ,

वरना बहुमूल्य में पार कहा पड़ोगे, तुम !!

कम किराए में नैया से समंदर पार करवा देंगे ,

बैठे बैठे कब तक खोओगे, तुम !

संग चलो तो हमारी सारी सीढ़ियां गिनवा देते, 

अटूट पतवार लिए चल पड़े मंजिल को, 

फिर से पताका शिखर में गाड़ेंगे ,

कफ़न बांधकर खड़े है मंजिल के राही ,

हारे कहां अभी जीत का जश्न मना रहे ।

हारे कहां अभी जीत का जश्न मना रहे।।


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