विशालकाय
विशालकाय
हे मनुष्य, विशालकाय जीव से तू क्यों घबराता है।
तुझसे डरावना कोई नहीं यहाँ,
फिर तू कैसे भयभीत हो जाता है।।
मनुष्य ने कदम रखा उनके घरौंदों में
तब उन्होंने रुुुद्र रूप धारण किया।
वो तो कुछ नहीं कहते तुमको
तुमने ही उनकी शांति को भंंग किया।।
जंगलों पर आधिपत्य जमाने की खातिर
प्रकृति के संतुलन को बेचैैन किया।
अपने मनोरंजन के कुछ पलों की खातिर
मूक जीवों को तुमने पिंजरे मेें कैद किया।।
भयभीत हो अब वापिस दौड़ लगाते हो
है हिम्मत तो सामना करो उनका।
प्यार के सिवा कुछ नहीें चाहते वो
भय की जगह दुलार लौटाओ उनको।।
✍शिल्प गोयल

