रोशनी की किरण की रोशनी जा रही है
रोशनी की किरण की रोशनी जा रही है
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ज़िंदगी में ज़वाल की घड़ी आ रही है
रोशनी की किरण की रोशनी जा रही है
बेख़बर वो दुनिया-जहान से हो रही है
फ़लसफ़ा-ए-सूरत खत्म कर रही है
मंज़र-ए-चश्म को यादगार बना रही है
भूले-बिसरे नज़ारों को दोहरा रही है
सजाए थे ख़्वाब जिन आँखों नें वो अब
अंधेरी कब्रगाह में धसती जा रही हैं
ग़र्क़ उसकी तमाम कायनात हो रही है
रोशनी की किरण की रोशनी जा रही है।