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Talat Jamal

Tragedy

4.5  

Talat Jamal

Tragedy

वैसे तो मैं आज़ाद हूँ

वैसे तो मैं आज़ाद हूँ

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वैसे तो मैं आज़ाद हूँ! 

मगर खुद की सुरक्षा में लाचार हूँ। 

कहने को सारा जहाँ है मेरा, 

पर खुद के घर में मेहमान हूँ। 


वैसे तो मैं आज़ाद हूँ! 

बस भेदभाव की शिकार हूँ। 

मेरे हिस्से की पूरी खुशियाँ, 

नहीं मिलने से हैरान हूँ। 


वैसे तो मैं आज़ाद हूँ! 

लेकिन बढ़ती उम्र से परेशान हूँ। 

सुन रही हूँ अपनों के ताने, 

बिन चाहे ब्याहने के लिए तैयार हूँ। 


वैसे तो मैं आज़ाद हूँ! 

किसी के घर की छत-दिवार हूँ। 

मेरा नहीं है कुछ भी मेरा, 

कभी पीहर कभी ससुराल हूँ। 


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